शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

Laxmi Chalisa | Shri Lakshmi Chalisa | लक्ष्मी चालीसा



।। लक्ष्मी चालीसा (Laxmi Chalisa) ।।


।। दोहा ।।

मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास। 
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस ।।

।। सोरठा ।।

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं। 
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका ।।

।। चौपाई ।।

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। 
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ।।

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी ।।
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा ।।

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी ।।
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी ।।

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी ।।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी ।।

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी ।।
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता ।।

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो ।।
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी ।।

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा ।।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ।।

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ।।
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ।।

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी ।।
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई ।।

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई ।।
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई ।।

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई ।।
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी ।।

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै ।।
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ।।

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना ।।
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै ।।

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा ।।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै ।।

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ।।
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं ।।

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई ।।
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा ।।

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी ।।
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं ।।

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै ।।
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी ।।

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी ।।
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में ।।

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण ।।
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिका ।।

।। दोहा ।।

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। 
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश।।
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर।।

Lakshmi Mata Aarti | Shri Laxmi Aarti | Om Jai Laxmi Mata



।। लक्ष्मी आरती (Laxmi Aarti)।। 


ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता |
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता |
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता |
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद् गुण आता|
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता|
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता |
उँर आंनद समाा,पाप उतर जाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

स्थिर चर जगत बचावै ,कर्म प्रेर ल्याता |
रामप्रताप मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता !!!

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

Hanuman Ashtak in Hindi



।।हनुमान अष्टक ।।


बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों । 
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात  न टारो । 
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो । 
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो । 
चौंकि महामुनि साप दियो तब ,
चाहिए कौन बिचार बिचारो । 
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ।  
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो । 
जीवत ना बचिहौ हम सो  जु ,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो । 
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब ,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ।  
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

रावण त्रास दई सिय को सब ,
राक्षसी सों कही सोक निवारो । 
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,
जाए महा रजनीचर मरो । 
चाहत सीय असोक सों आगि सु ,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो । 
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

बान लाग्यो उर लछिमन के तब ,
प्राण तजे सूत रावन मारो । 
लै गृह बैद्य सुषेन समेत ,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो । 
आनि सजीवन हाथ  दिए तब ,
लछिमन के तुम प्रान उबारो । 
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

रावन जुध अजान कियो तब ,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो । 
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल ,
मोह भयो यह संकट भारो । 
आनि खगेस तबै हनुमान जु ,
बंधन काटि सुत्रास निवारो । 
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

बंधू समेत जबै अहिरावन, 
लै रघुनाथ पताल सिधारो । 
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि ,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो । 
जाये सहाए भयो तब ही ,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो 
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

काज किये बड़ देवन के तुम ,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो । 
कौन सो संकट मोर गरीब को ,
जो तुमसे नहिं जात है टारो । 
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु ,
जो कछु संकट होए हमारो। 
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो । 

              ।।दोहा।।
लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर । 
वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर ।। 

Shri Bajrang Baan



।।दोहा।।
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥


।।चौपाई।।
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥ 


।।दोहा।।
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

Shri Durga Chalisa in Hindi | Ma Durga Chalisa | Durga Mata Chalisa



।। दुर्गा चालीसा ।।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तन बीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

आभा पुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥ 

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

Shiv Chalisa in Hindi



॥दोहा॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥


॥चौपाई॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥


॥दोहा॥

नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीस।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

Shri Hanuman Chalisa in Hindi



॥दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥

सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥ 

॥दोहा॥

पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥